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5G तकनीक की खामियां Drawbacks of 5G technology

भारत पर 5G तकनीक का प्रभाव: भारतीय सुरक्षा बलों के लिए अवसर और जोख़िम, भारत के सुरक्षा बलों के नज़रिए से, चीन की बड़ी दूरसंचार कंपनियों से कोई भी उपकरण लेना बेहद जोख़िम वाला क़दम होने का डर है

भारत अभी तक ये निर्णय नहीं ले पाया है कि वो चीन की टेलीकॉम कंपनी हुआवेई को अपने यहां के दूरसंचार नेटवर्क में शामिल होने की इजाज़त दे या नहीं. ऐसे में सवाल इस बात है कि इससे भारत के रक्षा बलों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इस सवाल का जवाब बड़ा पेचीदा है. 5G तकनीक कम से कम अगले एक दशक के दौरान, भारतीय रक्षा बलों के बहुत काम आने वाली है. 5G के बारे में कहा जा रहा है कि ये आधुनिकतम तकनीक होगी, जिसका सीधा असर सैन्य अभियानों पर पड़ेगा. इसके बावजूद, भारत सरकार अब तक ये फ़ैसला नहीं कर सकी है कि वो 5G तकनीक के उपकरण कहां से ख़रीदे. चीन की विवादित दूरसंचार कंपनी हुआवेई अभी भी कुछ 5G उपकरणों की आपूर्ति भारत को करने की रेस में शामिल है. क्वालकॉम, एरिक्सन और नोकिया के दबदबे वाले 5G के सेक्टर में हुआवेई अभी भी सबसे सस्ते उपकरण उपलब्ध कराने वाली कंपनी है. हाल ही में भारत सरकार ने घोषणा की थी कि वो किसी ऐसे स्रोत से 5G तकनीक के उपकरण नहीं ख़रीदेगी, जो विश्वसनीय न हों. इस बयान का अर्थ ये निकाला गया कि चीन की कंपनियां ZTE और हुआवेई, भारत को 5G उपकरण उपलब्ध कराने की रेस से बाहर हो जाएंगी. लेकिन, अभी भी भारत सरकार की ये दुविधा पूरी तरह से दूर नहीं हुई है कि वो 5G तकनीक उपलब्ध कराने वाली चीन की कंपनियों को पूरी तरह से रेस से बाहर कर दे.

  • राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा

भारत सरकार ने चीन की 5G कंपनियों की पहचान ऐसी संस्थाओं के तौर पर की है, जो अपने उपकरण लगाते वक़्त ‘ट्रैप डोर’ या ‘बैक डोर’ तकनीक का भी इस्तेमाल कर सकती हैं, जिनसे चीन की ख़ुफ़िया एजेंसियां भारत में जासूसी गतिविधियां चला सकें. ये तकनीकें अगर ZTE या हुआवेई लगाती है, तो ये लगभग तय है कि इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाएगी. 5G से असैन्य और कारोबारी दूरसंचार के क्षेत्र को बहुत लाभ होने वाला है. इससे ज़्यादा डेटा जेनरेट होगा, और अधिक बैंडविथ के माध्यम से तेज़ी से डेटा प्रवाह हो सकेगा. इस तकनीक से सैन्य क्षेत्र को भी काफ़ी फ़ायदा होने की संभावना है.

अन्य देशों की ही तरह, भारत में भी सैन्य योजनाकार इस अवसर का लाभ उठाकर अपनी मौजूदा और भविष्य की क्षमताओं में 5G हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को अपनी ताक़त बनाएंगे. 4G के मुक़ाबले 5G तकनीक की रफ़्तार काफ़ी अधिक होगी, इसकी बैंडविथ अधिक होगी और युद्धक्षेत्र के हालात से ताज़ातरीन जानकारी और तस्वीरे इसके माध्यम से अधिक तेज़ी से भेजी और हासिल की जा सकेंगी. इसके बावजूद सैन्य क्षेत्र की तकनीकी क्षमताओं के लिए 5G स्पेक्ट्रम से काफ़ी चुनौतियां भी उठ खड़ी होंगी. चीन के साथ लद्दाख में मई महीने से शुरू हुए टकराव से पहले ही, सैन्य बलों ने मोदी सरकार को आगाह किया था कि अगर चीन से 5G तकनीक के उपकरण लि जाते हैं, तो इससे भारत के सैन्य दूरसंचार में चीन को दख़लंदाज़ी करने का मौक़ा मिल सकता है और इससे चीन के साथ लगने वाली लंबी सीमा पर भारत की हिफ़ाज़त करने की सेना की क्षमताओं को क्षति पहुंचने की आशंका है.

  • ग़ैर चीनी कंपनी का विकल्प

इस संदर्भ में किसी भी 5G उपकरण को चीन की दो बड़ी दूरसंचार कंपनियों से ख़रीदना, कम से कम भारतीय सैन्य बलों के दृष्टिकोण से काफ़ी जोख़िमभरा हो सकता है. भारत सरकार को इसका बात का आकलन भी करना होगा कि 5G आधारित तकनीक किस तरह से अंतरिक्ष से संचार को प्रभावित कर सकती है. ज़मीन पर स्थित रिसीवर्स द्वारा अंतरिक्ष से सिग्नल प्राप्त करने में अड़चनें आ सकती हैं. उदाहरण के लिए अमेरिका में ग्लोबल पोज़िशनिंग सैटेलाइट (GPS) से L1 सिग्नल ख़ास तौर से सामान्य लोगों और कारोबारी इस्तेमाल के लिए बनाए गए हैं. इनका डिज़ाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि जिससे अंतरिक्ष में किसी और तरह के सिस्टम से उनके संचार में कम से कम व्यवधान हो. लेकिन, इस सिस्टम में ये सुविधा नहीं है कि वो दूसरे क़रीबी बैंड के ज़मीनी सिस्टम के व्यवधान का मुक़ाबला कर सके. 5G तकनीक के GPS सिग्नलों पर व्यवधान डालने की क्षमता केवल आम लोगों के लिए ही चिंताजनक नहीं है, बल्कि इसकी अमेरिकी सेना के लिए भी बड़ी अहमियत है. इन सभी चुनौतियों का आकलन करके ही भारत सरकार को ये फ़ैसला लेना होगा कि वो 5G के उपकरण कहां से ख़रीदे और इसके अलावा अंतरिक्ष से ज़मीनी नेटवर्क को मिलने वाले सिग्नल में बाधा की आशंकाओं से कैसे निपटे.

  • भारतीय कंपनी का अभाव

फिर भी, मोदी सरकार ने देश के 5G नेटवर्क से हुआवेई को दूर रखने या शामिल करने को लेकर मिले-जुले संकेत ही दिए हैं. ऐसा लगता है कि सरकार अभी ये फ़ैसला नहीं कर पाई है कि वो हुआवेई को किस हद तक भारत के 5G दूरसंचार नेटवर्क में शामिल होने की इजाज़त दे और दे भी या नहीं. 5G उपकरणों को दूसरी कंपनियों से ख़रीदने की लागत अधिक है. वहीं, फिलहाल कोई ऐसी भारतीय कंपनी नहीं है जो देश को 5G तकनीक के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की आपूर्ति कर सके. इसके बावजूद भारत के लिए अच्छा यही होगा कि वो 5G के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की सप्लाई के लिए कोई ग़ैर चीनी कंपनी ही चुने, क्योंकि इसी में बुद्धिमानी है.अपने द्वारा दिए गए 5G उपकरणों से परिचित होने के कारण, चीन के लिए भारतीय सेना के सिग्नल में बाधा डालने और इलेक्ट्रॉनिक संचार को जाम करना बहुत आसान होगा. हुआवेई या ZTE को भारत के 5G नेटवर्क में शामिल करने या न करने को लेकर टालमटोल करना तो उचित है, लेकिन उपरोक्त विश्लेषण के बाद, सबसे अच्छा होगा कि भारत सरकार इस बारे में कोई स्पष्ट फ़ैसला लेने में आना-कानी क़तई न करे.


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